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History of bagru Jaipur

 

History of bagru Jaipur

बगरू का इतिहास।

History of bagru

Bagru fort 


बगरू जयपुर अजमेर एक्सप्रेस हाईवे पर एक शहर है। बगरू भारत के राजस्थान राज्य के जयपुर जिले (तहसील सांगानेर) में एक शहर और एक नगर पालिका है । यह जयपुर से 32 किमी की दूरी पर जयपुर-अजमेर रोड पर स्थित है।जयपुर के डुुडााढ राज्य को बचाने के लिए बगरू के राजावत राजाओं ने विरता दिखाई और अपना वर्चस्व का अनूठा प्रदर्शन किया। जयपुर अजमेर रोड पर बगरू का किला,चांदपोल बाजार में बगरू जयपुर का रास्ता इन्हीं बगरू वालों की शान को याद दिलाता है। करीब डेढ़ हजार गांव की रियासत में बगरू ठिकाने का सम्मान ऊंचा रहा यही कारण रहा कि बगरू के राजा को अधराज का खिताब मिला था। जयपुर के राजा कभी भी बाहर जाते तो बगरू का राजा ही सारे राज्य पाठ के निगरानी रखता था। जयपुर राजा के दरबार में बगरू के राजा के बैठक राजा के दाहिने और रहती और राजा राजा ने अधराज को बगरू के लिए वंशा गत कर दिया। महाराजा रामसिंह के समय मैं सूरज सिंह बगरू पंचमुख साहिब के अलावा राजपूताना कोर्ट के न्यायधीश रहे। इनके अलावा जसवंत सिंह बगरू भी जज रहे थे। 1974 में इनकी मृत्यु हो जाने के कारण कीर्ति सिंह बगरू के गद्दी पर बैठे। बगरू पर जागीरदारों में शिक्षा के प्रति गहरी रुचि रही। अजमेर में जब मेयो कॉलेज खुला तभी बगरू का पृथ्वी सिंह वहां दाखिला लिया। माधव सिंह द्वितीय के समय जयपुर बगरू में विवाद हो गया था, इसका कारण यह था कि जयपुर के प्रधानमंत्री क्रांति सन मुखर्जी से बगरू के राजा की अनबन हो गई थी। और बगरू के राजा का प्रवेश जयपुर में बंद कर दिया गया था। बाद में राजीनामा हुआ और जयपुर के लोग बगरू में आने लगे। बेनाड का जागीरदार केशवदास बना था। केशव दास ने मानसिंह प्रथम के साथ युद्ध में वीरता दिखाइए। इसके बाद विवाद होने पर मिर्जा राजा जयसिंह आमेर के राजा बने तो बगरू के सुर सिंह को बगरू का राजा बनाया गया। इनके वंशज प्रताप सिंह, जुझार सिंह, सुल्तान सिंह, ने मालदेव पवार से हुए युद्ध में जोरदार प्रदर्शन दिखाया था। बगरू वालों की बेनाड के भेरुजी के प्रति जोरदार आस्था रही। गया उस समय में रही जब देना था। 1059 मैं अंतिम शासक कीर्ति सिंह भेरुजी को ठोक देने के लिए बैठ गए थे। बाबुल का पदम सिंह आगरा के निकट हुए युद्धों में जयपुर के लिए मारा गया था। माधव सिंह के समय गुलाब सिंह बगरू ने रणथंबोर की रक्षा में अपना सर कटवा लिया था। हावड़ा के युद्ध में बगरू के राजपूतों ने बलिदान दिया। साउथ सिंह बगरू ने तिरचाल और अफगान युद्ध में जोरदार वीरता दिखाई थी। अपील न्यायालय के जज जसवंत सिंह कि  1934 में मृत्यु होने के बाद कीर्ति सिंह बगरू की गद्दी पर बैठा था। सिया शरण लशकि के अनुसार रणथंबोर के किले दारी का सम्मान बगरू का मिला था। बगरू के युद्ध में राठौर से युद्ध करने के लिए राजा सूरजमल भी जयपुर के पक्ष में मराठों से बगरू के मैदान में मराठों को पराजित किया था। राजा सूरजमल ने अपना विकराल प्रदर्शन कर राजपूताना का विजय दिलाई थी। यहां के प्रथम सरपंच सीताराम लाछानी थे वह नगरपालिका के प्रथम अध्यक्ष बने। बगरू के बगरू प्रिंट को विश्व प्रसिद्ध करने में भी लाछानी जी का ही उद्देश्य था। इन्होंने इंदिरा गांधी को बगरू प्रिंट की साड़ी भेंट की थी। इंदिरा गांधी को बगरू प्रिंट की साड़ियां पसंद थी।


बगरू प्राकृतिक रंगों और हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग के लिए जाना जाता है । बगरू रायगर और छिपा समुदाय दोनों का घर है। छीपा 100 से अधिक वर्षों से कपड़े की छपाई की परंपरा में शामिल हैं।


रैगर चमड़े और उनके उत्पादों (जैसे जूते, मोचड़ी, राजस्थानी जूटी और अन्य चमड़े के सामान) के प्रसंस्करण और निर्माण में शामिल हैं। रैगर बड़ी चमड़े की कंपनियों को कच्चे चमड़े (अर्ध प्रसंस्कृत) का निर्यात करते हैं और स्थानीय बाजार (हटवाड़ा, जयपुर ) में भी बेचते हैं।


बगरू को प्राकृतिक रंगाई, नील रंगाई और कपड़ा वस्तुओं पर लकड़ी के हाथ ब्लॉक प्रिंटिंग के लिए भी जाना जाता है।


प्रसिद्ध जुगल दरबार मंदिर बगरू में स्थित है। यहां, बगड़ा समुदाय द्वारा एक वार्षिक "मेला" (मेला) का आयोजन किया जाता है जिसमें पड़ोसी गांवों के सैकड़ों लोग शामिल होते हैं। यह शांति का स्थान है और सभी समुदायों को एकजुट करता है।


बगरू में शहर के मध्य में एक किला (निजी संपत्ति) भी है जो आम तौर पर गणगौर महोत्सव के अवसर पर जनता के लिए खुला रहता है।

बगरू अपने विशिष्ट लकड़ी के हाथ ब्लॉक प्रिंट के लिए सबसे प्रसिद्ध है। [2] बगरू के ये प्रिंट व्यापक रूप से प्रशंसित हैं, [3] और "बगरू प्रिंट्स" के रूप में जाने जाते हैं। छपाई की अनूठी विधि में लकड़ी के ब्लॉक का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में, वांछित डिजाइन को पहले लकड़ी के ब्लॉक पर उकेरा जाता है और फिर नक्काशीदार ब्लॉक का उपयोग कपड़े पर पसंदीदा रंग में डिजाइन को दोहराने के लिए किया जाता है।


चिप्पा मोहल्ला (प्रिंटर का क्वार्टर) में कोई भी क्वार्टर में जा सकता है, जहां लोग हमेशा रंगों और ब्लॉकों से तल्लीन रहते हैं। बगरू कारीगरों के प्रयासों से ब्लॉक प्रिंटिंग की तीन सदियों पुरानी परंपरा को जीवित रखा गया है। परंपरा को ध्यान में रखते हुए, ये कारीगर नदी के किनारे से फुलर की मिट्टी के साथ कपड़े को सूंघते हैं और फिर इसे हल्दी के पानी में डुबो कर आदतन क्रीम रंग की पृष्ठभूमि प्राप्त करते हैं। उसके बाद, वे सांसारिक रंगों के प्राकृतिक रंगों का उपयोग करके कपड़े पर डिजाइन के साथ मुहर लगाते हैं।


कपड़े की छपाई के लिए आज भी कारीगर पारंपरिक वनस्पति रंगों का इस्तेमाल करते हैं। जैसे, नील से नीला रंग, नील से हरा अनार के साथ मिश्रित, मदर की जड़ से लाल और हल्दी से पीला रंग बनाया जाता है। आमतौर पर बगरू प्रिंट में प्राकृतिक रंगों में जातीय पुष्प पैटर्न होते हैं। बगरू प्रिंट राजस्थान के ब्लॉक प्रिंटिंग उद्योग का अनिवार्य हिस्सा है। गांव कुछ बेड कवर और अन्य सामग्री का निर्माण करता है।


कैसे पहुंचें बगरू, जयपुर

सड़क मार्ग द्वारा: बगरू जयपुर से 35 किमी की दूरी पर जयपुर- अजमेर मार्ग पर स्थित है। यहां स्थानीय टैक्सी, रोडवेज या निजी बसों या कैब से आसानी से पहुंचा जा सकता है।


रेल द्वारा: बगरू, जयपुर निकटतम जयपुर रेलवे स्टेशन के माध्यम से दिल्ली, आगरा, मुंबई, चेन्नई, बीकानेर, जोधपुर, उदयपुर, अहमदाबाद जैसे प्रमुख शहरों के रेलवे स्टेशनों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।


हवाई मार्ग से: बगरू तक निकटतम जयपुर हवाई अड्डे से पहुँचा जा सकता है, जिसे सांगानेर हवाई अड्डा भी कहा जाता है, जो दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, अहमदाबाद, जोधपुर और उदयपुर के लिए नियमित घरेलू उड़ानों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है ।

तो आपको बगरू के बारे में जानकर कैसा लगा हमें कमेंट में जरूर बताएं। जय राजपूताना जय राजस्थान

PM Gautam gidani




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